जंगल छोड़कर बाघ रहता है गांव में 3 महीने से तांडव मचाया बाघ
जंगल छोड़कर बाघ रहता है गांव में 3 महीने से तांडव मचाया बाघ
उमरिया मानपुर बफर जोन से लगा सेहरा नौगमा बगड़ो बल्होण धकोदर छपणोर उर्दना सेमारा सिगुणी कछौहा कठार आदि गांव में बना रहता है 24 घंटा भय खेत खलियान किसानों को किसी टाइम पर वह अपना काम निडर होकर नहीं कर सकता है क्योंकि वह दिन हो या रात तांडव मचाया है गांव वालों ने भयभीत व्याकुल होकर कभी तो शासन प्रशासन को कुछ बोल जाते हैं प्रशासनिक कर्मचारी भी बेचारे जनता की समस्या को देखकर मौन खड़े रहते हैं अपनी तरफ से जितनी व्यवस्था हो सकता है कभी तो हांथी लेकर आते हैं कभी तो कैंपर गाड़ी लेकर कभी कर्मचारी लोग अपनी गस्ती की कैंपर गाड़ी पर खुले गाड़ी पर अपनी जान को जोखिम देते हुए गांव से जंगल की ओर टाइगर को खदेड़ने का प्रयास करते हैं पर देखने को यह मिल रहा है आज वह टाइगर किसी के बस में नहीं है आने वाले समय में ग्रामीण जनों को अपना भविष्य अंधकार में दिख रहा है ग्रामीण जनों का कहना है कि बन कर्मचारी भी हमारे साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं वै लोग तो अपने शहर में जाकर चैन से सोते हैं और जब हम लोग चिख चिहार छोड़ते हैं आधे घंटे के रास्ते में 3 घंटा लगता है इसलिए हमे अपना भविष्य अंधकार में दिख रहा है हम ग्रामीण जनों का कहना है नीचे से ऊपर तक बैठा शासन-प्रशासन हमारे साथ कोई ऐसी भविष्य की सुरक्षा नहीं बना रही है सिर्फ वोट बैंक अपना विकास यात्रा सारी योजना चलती हैं एक टाइगर 3 महीने से तांडव मचाया है इसकी कोई व्यवस्था नहीं है अगर हमारे खेत खलिहान में जंगली जानवर अचानक दुर्घटना मृत्यु हो जाने पर पता नहीं कितने तरह की जांचे चलती है और हमारे यहां मानव अगर जीवन बिना हो जाता है तो उसे ₹400000 देकर आंसू पौछ दिया जाता है हमारा तो यह कहना है अपनी जानवर अपनी तरह से सुरक्षा कर ले तभी विकास यात्रा का मतलब समझ में आएगा इसलिए ना तो यहां विकास है ना तो यहां कोई मानव सुरक्षा है